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दान...

एक बार की बात है एक भिखारी कबीर साहब के पास आया और कुछ खाने के लिए मांगा । भिखारी काफी दिन से भूखा था । तब कबीर जी कपडे बुन रहे थे । कबीर जी ने भिखारी से कहा कि मेरे पास इस समय खाने के लिए कुछ भी नही है । और ना ही पैसे है । फिर कबीर जी ने उस भिखारी को पशम (ऊन ) के धागे का गोला देते हुए कहा कि इस समय मेरे पास यही है । इसे बेचकर कुछ खा लेना । बह भिखारी चला गया । रास्ते मे एक तलाब आया, तलाब मे मछलियाँ बहुत थी। भिखारी ने उस धागे का जाल बनाकर मछली को पकडने के लिए तलाब मे फेंका । क्योकि वह धागा कमाई वाले संत कबीर जी का था । इस लिए उस जाल मे काफी मछलियाँ आई । वह भिखारी सारा दिन मछलियाँ पकडता रहा । शाम को उसने सारी मछलियाँ बेच दी । वह भिखारी रोज ऐसे ही करता । उसने धीरे धीरे कई जाल पा लिए । और कुछ ही सालो मे वह बहुत अमीर आदमी बन गया । एक दिन उस भिखारी ने सोचा कि क्यो ना उस संत के दर्शन किए जाए ।
भिखारी संत कबीर जी के पास सोना चांदी और अच्छे कपडे ले के गया । कबीर जी ने पहले तो उसे पहचाना नही । पर जब उस भिखारी ने सारी बात बताई । तो कबीर जी बहुत पछताए और उस भिखारी को कहा कि तुमने जितनी भी मछलियो को मारा है ।उन सब का आधा पाप मुझे लगेगा । क्योंकि मै तुम्हें वो धागा नहीं देता तो तुम कभी मछलियाँ नही पकडते । कबीर जी उसका सब सामान लोटा दिया और आगे से अच्छे काम करने का उपदेश दिया ।
हमें भी सोच समझकर दान करना चाहिए क्योंकि अगर हमारा किया हुआ दान किसी गलत काम मे लगेगा तो उसका फल हमें भी भोगना पडेगा..!!!!!

                                   

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