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सफलता का श्रेय....

एक बार यात्रियों से भरी एक बस
कहीं जा रही थी।
अचानक मौसम बदला धुलभरी आंधी के बाद
बारिश की बूंदे गिरने लगी बारिश तेज
होकर
तूफान मे बदल चुकी थी
घनघोर अंधेरा छा गया भयंकर बिजली
चमकने
लगी बिजली कडककर बस की तरफ आती
और
वापस चली जाती
ऐसा कई बार हुआ सब की सांसे ऊपर की
ऊपर
और नीचे की नीचे।
ड्राईवर ने आखिरकार बस को एक बडे से
पेड से
करीब पचास कदम की दूरी पर रोक दी
और
यात्रियों से कहा कि इस बस मे कोई
ऐसा यात्री बैठा है जिसकी मौत आज
निश्चित है
उसके साथ साथ कहीं हमे
भी अपनी जिन्दगी से हाथ न धोना पडे
इसलिए सभी यात्री एक एक कर
जाओ और उस
पेड के हाथ लगाकर आओ जो भी बदकिस्मत
होगा उस पर बिजली गिर जाएगी और
बाकी सब बच जाएंगे।
सबसे पहले जिसकी बारी थी उसको दो
तीन
यात्रियों ने जबरदस्ती धक्का देकर बस
से नीचे
उतारा वह धीरे धीरे पेड तक गया डरते
डरते पेड
के हाथ लगाया और भाग कर आकर बस मे बैठ
गया।
ऐसे ही एक एक कर सब जाते और भागकर
आकर
बस
मे बैठ चैन की सांस लेते।
अंत मे केवल एक आदमी बच गया उसने
सोचा तेरी मौत तो आज निश्चित है सब
उसे
किसी अपराधी की तरह देख रहे थे जो आज
उन्हे अपने साथ ले मरता
उसे भी जबरदस्ती बस से नीचे उतारा गया
वह
भारी मन से पेड के पास पहुँचा और जैसे ही
पेड के
हाथ लगाया तेज आवाज से
बिजली कडकी और बिजली बस पर गिर
गयी
बस धूं धूं कर जल उठी सब यात्री मारे गये
सिर्फ
उस एक को छोडकर जिसे सब बदकिस्मत
मान
रहे
थे वो नही जानते थे कि उसकी वजह से
ही सबकी जान बची हुई थी।
"दोस्तो हम सब अपनी सफलता का श्रेय
खुद
लेना चाहते है जबकि क्या पता हमारे साथ
रहने वाले की वजह से हमे यह हासिल
हो पाया हो......

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