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माँ क़ी ममता...

 माँ की ममता

एक बार एक सौदागर राजा के महल में दो बड़ी ही खूबसूरत गायों को लेकर आया। दोनों ही गायें दिखने में बिल्कुल एक जैसी थीं। सौदागर राजा से बोला, 'महाराज,इनमें एक मां है और एक बेटी। पर मुझे यह नहीं पता कि मां कौन है और बेटी कौन है क्योंकि दोनों में लेशमात्र भी अंतर नहीं है। मुझे किसी ने यह कहा कि भारत देश के राजा का मंत्री बेहद कुशाग्र बुद्धि है और यहां मुझे अवश्य मेरे प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा।' मंत्री ने दोनों का बारीकी से निरीक्षण किया किंतु वह भी यह नहीं पहचान पाया कि वास्तव में कौन मां है और कौन बेटी? दुविधा में फंसे मंत्री ने एक दिन की मोहलत मांगी। घर आने पर वह बेहद परेशान रहा। जब मंत्री की पत्नी ने उससे परेशानी का कारण जानना चाहा तो उसने सौदागर की बात बता दी। यह सुनकर पत्नी मुस्कुराते हुए बोली, 'बस इतनी सी बात है। यह तो मैं भी बता सकती हूं। हां इसके लिए मुझे उन दोनों गायों को देखना होगा।' यह सुनकर मंत्री गायें ले आया। मंत्री की पत्नी ने दोनों गायों के आगे अच्छा भोजन रखा। कुछ ही देर बाद उसने मां व बेटी में अंतर बता दिया। सुबह मंत्री ने मां व बेटी की पहचान कर दी। सौदागर ने जब अंतर का कारण जानना चाहा तो मंत्री की पत्नी बोली, 'मैंने बस दोनों को भरपेट भोजन कराया। मैंने देखा कि एक गाय जल्दी-जल्दी भोजन करने के बाद दूसरी गाय के भोजन में मुंह मारने लगी और दूसरी वाली ने पहली वाली के लिए अपना भोजन छोड़ दिया। ऐसा सिर्फ एक मां ही कर सकती है।' यह सुनकर सभी दरबारी मंत्री की पत्नी के निर्णय पर वाह-वाह कर उठे और सौदागर के मुंह से स्वतः ही निकला... *धन्य है मॉ*

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ईश्वरीय भाणा

फकीर बुलेशाह से जब किसी ने पूछा, कि आप इतनी गरीबी में भी भगवान का शुक्रिया कैसे करते हैं तो बुलेशाह ने कहा चढ़दे सूरज ढलदे देखे... बुझदे दीवे बलदे देखे., हीरे दा कोइ मुल ना जाणे.. खोटे सिक्के चलदे देखे. जिना दा न जग ते कोई, ओ वी पुत्तर पलदे देखे। उसदी रहमत दे नाल बंदे पाणी उत्ते चलदे देखे। लोकी कैंदे दाल नइ गलदी, मैं ते पत्थर गलदे देखे। जिन्हा ने कदर ना कीती रब दी, हथ खाली ओ मलदे देखे .. ..कई पैरां तो नंगे फिरदे, सिर ते लभदे छावा, मैनु दाता सब कुछ दित्ता, क्यों ना शुकर मनावा l

आत्मविश्वास

एक राजा के पास कई हाथी थे, लेकिन एक हाथी बहुत शक्तिशाली था, बहुत आज्ञाकारी, समझदार व युद्ध-कौशल में निपुण था। बहुत से युद्धों में वह भेजा गया था और वह राजा को विजय दिलाकर वापस लौटा था, इसलिए वह महाराज का सबसे प्रिय हाथी था। समय गुजरता गया  और एक समय ऐसा भी आया, जब वह वृद्ध दिखने लगा।                       अब वह पहले की तरह कार्य नहीं कर पाता था। इसलिए अब राजा उसे युद्ध क्षेत्र में भी नहीं भेजते थे। एक दिन वह सरोवर में जल पीने के लिए गया, लेकिन वहीं कीचड़ में उसका पैर धँस गया और फिर धँसता ही चला गया। उस हाथी ने बहुत कोशिश की, लेकिन वह उस कीचड़ से स्वयं को नहीं निकाल पाया। उसकी चिंघाड़ने की आवाज से लोगों को यह पता चल गया कि वह हाथी संकट में है। हाथी के फँसने का समाचार राजा तक भी पहुँचा।                        राजा समेत सभी लोग हाथी के आसपास इक्कठा हो गए और विभिन्न प्रकार के शारीरिक प्रयत्न उसे निकालने के लिए करने लगे। जब बहुत देर तक प्रयास करने के उपरांत कोई मार्ग नहीं...

देनेवाला जब भी देता, देता छप्पर फाड़ के,”

देनेवाला जब भी देता एक गाँव में रामू नाम का एक किसान रहता था, वह बहुत ही ईमानदार और भोला-भाला था, वह सदा ही दूसरों की सहायता करने के लिए तैयार रहता था, एक बार की बात है कि शाम के समय वह दिशा मैदान (शौच) के लिए खेत की ओर गया, दिशा मैदान करने के बाद वह ज्योंही घर की ओर चला त्योंही उसके पैर में एक अरहर की खूँटी (अरहर काटने के बाद खेत में बचा हुआ अरहर के डंठल का थोड़ा बाहर निकला हुआ जड़ सहित भाग) गड़ गई, उसने सोचा कि यह किसी और के पैर में गड़े इससे अच्छा है कि इसे उखाड़ दूँ, उसने जोर लगाकर खूँटी को उखाड़ दिया, खूँटी के नीचे उसे कुछ सोने की अशरफियाँ दिखाई दीं, उसके दिमाग में आया कि यह पता नहीं किसका है? मैं क्यों लूँ? अगर ये अशरफियाँ मेरे लिए हैं तो जिस राम ने दिखाया, वह घर भी पहुँचाएगा (जे राम देखवने, उहे घरे पहुँचइहें), इसके बाद वह घर आकर यह बात अपने पत्नी को बताई, रामू की पत्नी उससे भी भोली थी; उसने यह बात अपने पड़ोसी को बता दी, पड़ोसी बड़ा ही घाघ था, रात को जब सभी लोग खा-पीकर सो गए तो पड़ोसी ने अपने घरवालों को जगाया और कहा, ”चलो, हमलोग अशरफी कोड़ (खोद) लाते हैं,” पड़ोसी और उसके घरवाले...